वादे निभाने की अगर बात होती
तो सायेद वो बात समझ भी आती
पर गलती कहां हुई ये बात
तो हमको पता ही नहीं चल पाई
तुम इंज़ाम पर इंज़ाम लगाते गए
और हम उनको सच मान सौदे पे सौदे लगाते गए
कभी कतल अपने जसबतों का किया
तो कभी खुद की ख्वाहिशों का गला घोंट डाला
गलती तो बस इतनी सी थी...
कुछ अधूरे वादे
