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इत्तेफाक

इत्तेफाक

आंसुओं का तो हिसाब करना
हमने भी छोड़ दिया था
फिर क्यों तुमने टूटे हुए दिल को
यों इस कदर ठुकराने की जुर्रत की थी

माफ तो खैर हम कर ही देते
पर तुमने हमसे रुसवा होने का
कोई मौका तो छोड़ दिया होता
काश उस मौके पर हमने भी थोड़ा जी लिया होता

विश्वास तो खैर गैरों ने तोड़ा
पर काश तुमने भी अपना हक तो जताया होता
एक बार ही सही पर बोल कर तो देखा होता

काश वह ख्वाब जो आप हमसे इत्तेफ़ाक नहीं रखता
हमारे सपनों को यूं तो ना बर्बाद किया होता
काश के हम ने भी अपने दिल को जंजीरों से बांधने की हिमाकत ना की होती
तो आज यह दिल इस तरह आंसू ना बहा रहा होता

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