Sunday

बचपन

बचपन
बचपन की फरमाईसें अब ज़िद बन गई हैं बचपन का लाड प्यार अब गुस्से में बदल गया है बचपन का बचपना कब चला गया पता ही नहीं चला अब पीछे मुड़ते हैं तो कुछ यादें हैं जो ठीक से भी याद नहीं पता नहीं क्यों बड़े होने का जुनून सवार था पर आज सोचते हैं हम जहाँ हैं वहीं पर सबसे अच्छे...

अपनी कविता

अपनी कविता
हवा जैसे बहती है वैसे ही चलती हूँ मै भी कभी ज़ोर से धक्का लगता है तो कभी खुद ही दौड़ पड़ती हूँ कभी चुप से एक कोने में बैठ जाती हूँ तो कभी मारे खुशी के पूरा घर सिर पे ऊठा लेती हूँ कभी हस्ती हूँ तो हसना बंद ही नहीं होता और कभी बिना वजह ही मूँह फूला के बैठ जाती हूँ ईतनी...

दूखी आत्मा

दूखी आत्मा
कभी किसी को इतना मत दुख देना की बेचारा दुख की डेफिनेशन ही भूल जाए कुछ देना ही है तो उसे झोली भर के खुशियाँ दो बदले में उससे कुछ ना माँगना बस उस इन्तजा़र में रहना, समय कभी रूकता नहीं और समय किसी और का होता नहीं अगर तुम खुशी दोगे तो बदले में खुशी ही मिलेगी चाहे देर से...

हाथों की लकीर

हाथों की लकीर
देख कर अपना हाथ कुछ समझ नहीं आया मुझे कोई कहता है ये ऊपर वाले का लेखा जोका है तो कोई कहता है सब बकवास है अगर बकवास होता तो हिटलर आज जिन्दा होता और इन्सान आज उस जुर्म रास्ते पर नहीं चल रहा होता क्योंकि ऊपर वाला हमे ऐसा क्यों बनाएगा?? कोई दुश्मनी तो नहीं उसके साथ हमारी असल...

ताज़ा दिमाग

ताज़ा दिमाग
आज उस पंखे को देखकर उस पर लगी धुल को देख कर ये सोच रही हूँ हवा भी चल रहा है और पंखा भी शायद पंखे के बिना जीया जा सकता है पर हवा के बिना यह सोचा ही नहीं जा सकता ऐसे ही जैसे हम सादा खाना खा कर भी ज़िन्दा रह सकते हैं पर दुनिया के अपना औदा बना कर रखने के लिए हम कुछ भी...

नमक

नमक
नमक दिखती बहुत छोटी है पप इसके काम बेहद बड़े हैं खाने में ना डालो ते स्वाद फिका पड़ जाता है बातों में तो मिश्री ही होनी चाहिए नमक नहीं नमक अगर मिर्च से मिल जाए तो घर भी तबाह कर देती ह...