आज उस पंखे को देखकर
उस पर लगी धुल को देख कर ये सोच रही हूँ
हवा भी चल रहा है और पंखा भी
शायद पंखे के बिना जीया जा सकता है
पर हवा के बिना यह सोचा ही नहीं जा सकता
ऐसे ही जैसे हम सादा खाना खा कर भी ज़िन्दा रह सकते हैं
पर दुनिया के अपना औदा बना कर रखने के लिए हम कुछ भी खा लेते हैं
क्योंकि औदा बरकरार रखे बिना हमे नींद कँहा आता है??
और ऐेैसे ही जैसे ज़िन्दा तो हम पानी पी कर भी रह सकते हैं
पप दिन रात पसीना बहाते हैं ताकी थोड़ी तसल्ली तो मिले
हम खा खा कर भी ज़िन्दा रह सकते हैं
पर हम दौड़ते हैं भागते हैं ताकी
खुद को उत्साह दे सके
क्योंकि हमे अच्छाईयों से
फर्क नहीं पड़ता पर
गालियों से पड़ता है
इसलिए खुद की लड़ाई खुद से ही हो जाती है
अब फैसला हम पर है की हम
जीने के लिए जीए या
फिर खुद को और अपनो को खुश
करने के लिए जीए??
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