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अपनी कविता

apni Kavita

हवा जैसे बहती है
वैसे ही चलती हूँ मै भी
कभी ज़ोर से धक्का लगता है
तो कभी खुद ही दौड़ पड़ती हूँ
कभी चुप से एक कोने में बैठ जाती हूँ
तो कभी मारे खुशी के पूरा घर सिर पे ऊठा लेती हूँ
कभी हस्ती हूँ तो हसना बंद ही नहीं होता
और कभी बिना वजह ही मूँह फूला के बैठ जाती हूँ
ईतनी सारी खूबीयाँ है मुझमे भी फिर
मै भी कोई हवा से कम अतरंगी थोड़ी ना हो

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