कर्ज़दारों के इस जहां में
हम एक फर्जी की जुबानी ही सही
जहां पर सब फर्जी ही सही
पर कोई फरेब तो नहीं
फर्जी तो हम सब हैं यहां
बस फर्ज के लिए वक्त नहीं है यहां
फर्ज हमें याद नहीं और फर्जी कहलाने लायक नहीं
तो क्यों अंतर है उस मात्रा का जिसमें
फर्ज को फर्जी बना दिया
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