आज फिर से सामना हुआ है मेरा
तू कौन है इस जहाँ में??
ये खुद से पूछा है मैने
ठोकर तुझे मिल सकता है
पर तोहफा मिलना इतना आसान तो नहीं
सायद यह तेरा वेहम होगा
यह सिलसिला महज़ एक इत्तेफाक होगा
विश्वास करना चाहा खुद पर
पर ये विश्वस ही है जो अब नहीं होता
अनजानो के इस भीर में
कोई अपना ही तो नहीं होता
ये कैसा सिलसिला है जो दुश्मन नहीं दोस्त बनाता है
परायों को भी अपना बनाता है
खुद को खुद से मिलवाता है
ये तो सनसनी नहीं सिलसिला है मेरे दिल का
जो अपनो को बड़ा ही खास बनाता है
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