Saturday

दूरीयाँ

दूरीयां

रातों को जग कर यह सोचा
सोचा की आगे कैसे जाए
कैसे जाए यह तो न मालूम
पर सभी से दूर कहीं चले जाए

होके अलग सबसे जुदा
न जाने किसी जहाँ मे कहीं
बुलाने पर भीआवाज़ न जाए
ऐसे किसी जहाँ में कहीं

बुलाओगे फिर भी आवाज़ न जाएगी
तब एक मेहरबानी ज़रूर यह करना
नफरत तो हमेशा करते रहे हमसे
तब प्यार ज़रा तुम बरसा देना

कभी ना लोट के आ पाऊँ
इसकी कोशिश मै खुद करूँगी
तुम भी मुझ तक ना पहुँच पाओ
मै खुद ही इसकी नीव बनूँगी
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