Sunday

खूदगर्ज इनसान

खुदगर्ज इंसान

ना जाने क्यों खफ़ा सी हूँ तुमसे
शायद कुछ ज्या़दा ही गुस्सा हूँ तुमसे
पर तुमको इससे फर्क पड़ जाए
इतने आसान तो तुम थे ही नहीं कभी

तुमसे गुस्सा करने का बेहद मन करता है
तुमसे झगड़ने को बेहद मन तरसता है
क्या करें हम मगर ऐ जनाब
आपसे मिलने को ये दिल बड़ा करता है

आप कुछ ज्यादा ही व्यस्त हो ये आप कहते हो
पर आप कुछ ज्यादा ही मसरूफ़ हो ये हम कहते हैं
पता नहीं ये दोनो बातें एक सी है या नहीं
पर आप हमारी फिक्र बेहद करते हो

कैसे खूदगर्ज इनसान हो आप जनाब
परेशान आप होते हो और बेचैन हमे करवा देते हो
ताकी हमारा पूरा ध्यान आप पे चला जाए
और आप बैठे चाय की चुसकियाँ लेते रहो
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