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अँधेरी रात

अँधेरी रात

ना जाने दिल क्यों डरता है
ना जाने दिल क्यों घबराता है

मालूम है इसकी खास बजह
यह अभी भी उससे डरता है

यह अभी भी डरता उस अँधेरी रात से
जिस रात में नींद कम और डर ज्यादा लगता है

आदत तो है इसकी न जाने कबसे
तब आँसू बहा कर खूद ही खूद को सुलाया था

तब भी भरोसा करके हिम्मत किया था
अकेले अँधेरे घर में रहने का सोचा था

खूद को झूठ मूठ समझाया था
कहा की यह अँधेरा बस मेहमान है

अच्छे से इसे देख लो
यह तो पल भर का इन्सान है

मेहमान कब दोस्त बन गया पता ही नही चला
यह अँधेरा कब अपना बन गया गौर ही नही फरमाया

लोग पूँछते हैं तुझे डर नहीं लगता??
मै मन में कहती हर रात अकेले गुज़ारना सिखा है

अकेले एक नन्ही जान खुद को लोरी सुनाया करती थी
एक छोठी सी जान खुद को सुलाया करती थी

उस रात की आदत है हमको बचपन से
जिस रात से तुम डरते हो न जाने कबसे

इसलिए डर तुम्हारा दुश्मन होगा
मेरा तो सबसे अच्छा यार है यह
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