Thursday

सब एक ही है

सब एक ही है

अलग तो केवल हम मज़हब से
पर आज तो इन्सानों में भी भेद भाव आ गया है
कसूर तेरा तो नहीं
कसूर मेरा भी नहीं
कसूर तो हालात का है
जिसने बनाया है इन सारी बन्दिशों को
कोई अमीर है तो, कोई गरीब है
चलो अमीर गरीब की बात हमे समझ में भी आती है
पर ऊँचा नीचा तो घर और ईमारतों में होता है
अब तो यह लोगों में भी आ गया है
है तो केवल हिन्दुस्तानी फिर भी इतना भेद क्यों 
अगर सोच में एकता नहीं तो जसबात की कदर है
अगर रास्तों में एकता नहीं तो मंज़िल हमसे दूर नहीं
पर अगर लोगों मे एकता नहीं तो ज़ालिमों का दबदबा हमसे दूर नहीं
इसलिए सोचो एक करो अनेक 
और बन जाओ एक
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