कुछ इस कदर शुरू हुया
हसी तो जा चुकी थी मगर
उसने फिर से दसतक दिया दरवाजे पर
दरवाजा खोले की बंद रखे
यह समझ में ना आए हमे
फिर यह रोने के पल तो
हज़ार से कम होते ही नहीं
तो इस बार दरवाज़ा खोल ही लेते हैं
क्या पता उस पार आप खड़े इन्तज़ार में हो
और हम यहाँ सोच में व्यस्त हो जाए
और आप परेशान होकर फिर लौट जाओ
0 comments: