Sunday

दरवाज़े पर दसतक

darwaje par dastak

खुशयों के आने का सिलसिला
कुछ इस कदर शुरू हुया
हसी तो जा चुकी थी मगर
उसने फिर से दसतक दिया दरवाजे पर

दरवाजा खोले की बंद रखे
यह समझ में ना आए हमे
फिर यह रोने के पल तो 
हज़ार से कम होते ही नहीं

तो इस बार दरवाज़ा खोल ही लेते हैं
क्या पता उस पार आप खड़े इन्तज़ार में हो
और हम यहाँ सोच में व्यस्त हो जाए
और आप परेशान होकर फिर लौट जाओ
Skip.                                                  Next          

Related Posts:

0 comments: