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उलझन का ईलाज

उलझन का ईलाज

रिश्तों को समझते समझते
आज उलझा है मेरा ही दिल
कैसे निकलें इन उलझनों से
इस बात का पता है तो मगर
पर डर कहीं मै ना टूट जाऊँ
इन सबको सुलझाते सुलझाते।

प्यार है तो इतनी कठिनाईयाँ क्यों??
दरद है तो मरहम इतना दूर क्यों
आँसू है और सिसकियाँ भी है
तुम हो पर मेरे पास क्यों नहीं??
इसलिए प्यार है और चाहत भी है
दोस्ती हैं और बेवकूफ़ीयाँ भी
सबके होते हुये भी तेरा ही इन्तज़ार
इस छोटू से दिल में तेरे लिये प्यार है
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