Sunday

अजूबा

अजूबा

रास्तों में चलते चलते
हमेशा कुछ अजूबा नहीं होता
कुछ काम हमें भी करना होता है
कुछ मेहनत हमें भी करना पड़ता है

बैठे बिठाये जैसे फूल नहीं खिलता
वैसे ही कभी बातों से पेट नहीं भरता
किस्मत की गाड़ी नहीं चलता
और हम बैठे नहीं रहते

माना की स्टेशन आता है
पर ट्रेन फिर अगे निकल जाती है
लेकर अपने साथ कुछ यादें ले जाती है
जिनका ज़िक्र सिर्फ यादों में रह जाता है

खोया कुछ नहीं पर पाया सबको
जिनको बुलाया था सब आए
पर अंजानों की हस्ती में
कुछ नाम अंजान हो गए

ज़िक्र किसी से क्या करना
जो अपना नहीं थी
उन्हें हमारा कहते रहे
और वो किसी का भी नहीं हो पाया

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