ईरादा तो दोस्ती का था
नजाने कैसे प्यर हो गया
कौन जाने ये क्या हो गया
जो भी हुआ बहुत बढ़िया ही हुया
क्योंकि दोस्ती के लिए मै बनी हूँ
और प्यार के लिए तुम
प्यार करना मेरे बस में नहीं
हाँ मगर प्यार निभाने के तरीके
बाखूबी आते हैं हमें
बस में कुछ भी नहीं होता
होता तो बस अपने सर और पांव हैं
जसबातों के तो पंख होते हैं
इन्हें ना कोई रोक सकता है
नाही कोई दफन कर सकता है
इसलिए मै बैठी कविताऐं लिख रही हूँ
हजा़रो बनदिशों के बाद
और तुम बैठे पढ़ रहे हो
जहाँ तुम्हें नफरत है किताबों से
पर मेरी कविताओं से नहीं
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