Friday

जिया है फिरसे

जिया है फिर से

सूरज ढल चूका था
अंधेरा बस गिरने ही वाला था
मै चल रहा था सायद अपने ही
धून का सवारी बन कर कहीं

मै चलता गया और शहर मेरे पीछे
शांत होकर अलविदा कहने लगा
शहर छूठा तो गांव आया
बनकर खूशियाँ मेरे साथ चली

मै इनमे समा ही रहा था की
मेरे बचपन ने मुझे दसतक दिया
कह रह थी सायद की यह तो कहीं तू तो नहीं
मै सोच में ही था की देश के जवानो
से पाला पड़ा

अब मुझे लग रहा था मै कितना खूश नसीब हूँ
जिसका लोग सपना देखते हैं
मैने उस पल को दोहराया है
इस छोटी सी ज़िन्दगी में मैने खुद को फिर से जिया है
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