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मिली आज़ादी सोच से

मिली आज़ादी सोच से

भारत के नाम पर यह देश है मेरा
जहाँ हर तरह के लोगों का भंडार लगा है
यहाँ हिदुंओं के घर मूसलिम भाई बनाते हैं
और मुसलिम भाईयों के लिए चादर हिदुं भाया सिलते हैं
यहाँ काम में जैसे कोई भेद नहीं
वैसे लोगों में कोई अलग नहीं है
हम कलाम जी को भी मीनते हैं
और अटल जी को भी ऋद्धा करते हैं
यहाँ फौज नें मेरे पापा भी है
और मेरे दोस्त के अब्बू भी
मूझे तो मेरे हाथों से बनी पनीर कोफता भी पसंद है
और मेरी सहेली के अम्मी की बनी सेवईया भी लाजवाब लगती
हम मंदिरों में भी माथा टेकते हैं
और पीर बाबा का प्रसाद भी खाते हैं
क्योंकि ये नेताजी का भी देश है
और बिसमिल्लाह खान का भी
हाँ यह सही है देश के लोग ही देश के भेदी है
पर अच्छाई तो हर किसी के दिल में है
सबको शान्ति और अमन चाहिए
कुछ राजनिती ऐैसी बनी की दरार पड़ गई दीवारों पर
पर आज भी हम लोगों से नमस्ते कहके मिलते हैं और
खुदा हाफ़िज़ बोलके अलविदा कहते हैं
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