पाबन्दीयों की भरमार है
भंडारा अगर खाने का लगता
तब बात हमारे समझ में भी आता
पर यहाँ तो थाल सजी है
बात अगर प्यार महोब्बत की होती
तब बात हमारे समझ में भी आता
पर यहाँ तो जुलूस खामियों का निकलता है
वो भी तानों के फूल चढ़ये हुए
आज दफन है सारी ख्वाइसें
पर कभी ख्वाइसें मर सकती है भला??
वो तो बस इन्तजार में रहती
थोड़ी धूप और पानी का रास्ता ताके
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