Sunday

सुकून

सुकून

देखा जो ख्व़ाब मैने
पा कर उसे सुकून मिला मुझे
चाहत जो तेरी है
किस कदर है यह ब्यान ना कर पाऊँ
आशीकी है तुझसे यह कह कर भी ना कह पाऊँ
तेरे रंग में आज रंगने का मन है
तेपे संग आज ढ़ल जाने का मन है
कैसे खुद को रोकूँ यह जानू ना
तेरे रोके से भी न रुके शायद
वफा करने का तो सोचा भी ना जा सके यहाँ
तुझे चोट पहुँचाने का तो सपने में भी न सोचा जा सके कभी

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