Sunday

ज़ख्म

ज़ख्म


आज तक जो लोग अपने कहलाते थे
वो आज रूठें है हमसे
गलती क्या हुई़ तक पता नहीं हमें
और इनज़ामों की बरसात होने लगी है
समय तो कभी रूकता नहीं
पर आज जैसे घड़ी ही खराब हो गई है

घड़ी का क्या है आज बंद पड़ी है
कल फिरसे चलने लगेगी
पर आज जो ज़ख्म सबसे मिला है
उसे कैसै मिटाऊँ, उसे कैसै भूलाऊँ
आज देख लिया वक्त जब बुरा होता है
तब कोई पास नहीं होता है
वैसे तो सब दूर भाग ही जातें है
पर बेवकूफ हम है जो उन्हें
रोकने की कोशिश में लग जाते हैं

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