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अलग इन्सान

अलग इंसान

हर एक इन्सान हर एक किस्म का हो ता है
कोई एक इन्सान एक जैसा नहीं होता
सब की सोच तो अलग सी होती है
और सभी के चेहरे भी तो अलग से होते ही हैं
पर एक चीज़ जो सभी इन्सानों में हैं
वो हैं उनके चमकीले सफे दांत
अब लोग उन्हें इस्तमाल क्यों नहीं करते
ये मेरी समझ में नहीं आता
थोड़ा सा हसने में क्या बिगड़ जाता है
मेरे पल्ले तो नहीं पड़ता
मेहंगाई के इस दौड़ में
यह हसी ही है जो मुफ्त में मिलती है
और बड़े ताज्जुब की बात तो यह है
की इस हसी को खुद से अलग नहीं कर सकते
इसलिए खुदा के इस मुबारक
चीज़ के लिए उन्हे सुकरिया नहीं कह सकते
तो चलो क्यें ना इनका भरपूर इस्तेमाल किया जाए
किसी और के लिए नहीं पर खुदा को सुकरिया
बोलने के लिए इस्तेमाल के लिए कर भी दिया करो

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