Sunday

खुदा की चाहत

khuda ki chahat

खुदा को इस कदर चाहा है
की उन्हे अपनी बना लिया है
उन्ही को अपने माँ और बाप का दरजा दे दिया है
कभी किसी को मां समझ कर
अपनी आँख भर कर
उनके सामने आँसू बहा लिया
तो कभी किसी को पिता मान कर
कुछ फरमाईसें कर लिया
लोग हमें पागल समझे या कुछ और
पर सच तो यह है जब रिश्ता कहलाने के लिए होता है ना
तब इन्हे ही मां और पिता का सम्मान देना पड़ता है
जब अँधेरे से जी घबराया
तो हौसला बनके तू साथ थी
जब सबने हमसे मूँह मोड़ लिया
तब विश्वास बनके तुम साथ थी
जब खुद पर विश्वास डगमगाने लगा
तब तूने कुछ दोस्त भेज दिया
अब इतने सारे उपकारों को तेरे
कैसे बयान मै कर पाऊँ
शब्द बनके आज मेरी कविता में तू है
और तेरे अलफाजों के जादू से
आज मेरे सारे तारी फों की हकदार भी तू है

Related Posts:

  • दूखी आत्मा कभी किसी को इतना मत दुख देना की बेचारा दुख की डेफिनेशन ही भूल जाए… Read More
  • अपनी कविता हवा जैसे बहती है वैसे ही चलती हूँ मै भी कभी ज़ोर से धक्का लगता है… Read More
  • बचपन बचपन की फरमाईसें अब ज़िद बन गई हैं बचपन का लाड प्यार अब गुस्से मे… Read More
  • हाथों की लकीर देख कर अपना हाथ कुछ समझ नहीं आया मुझे कोई कहता है ये ऊपर वाले का … Read More

0 comments: