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इंसानियत

इंसानियत

इंसान को इंसानियत से जुदा कर डाला
यह घमंड कैसा है जिसने अपने मालिक को ही निगल डाला
प्यार भरोसा यह सब तो था तुम्हारे पास
पर क्यों तुमने इंसानियत का ही गला घोट डाला

नफरत और झगड़े से यह दुनिया नहीं चलती
प्यार के बिना हमारी भूख भी कहा मिटती
तुम तो सौदा कर आए अपने इंसानियत का
और पलट कर एक बार भी नहीं सोचा अपने अस्तित्व का

लोग कहते हैं हमें इन्सान की परख नहीं
पर हम कहते हैं वो दिल ही क्या जिसमें थोड़ा सा प्यार नहीं
वह इंसानियत है क्या जो तुम्हारी सोच को धुंधली कर दे
वह इंसानियत ही क्या जो हमें रुसवा कर दे

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