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बेटी

बेटी

अगर परीक्षा लेनी है तो
यह लो की बेटी अपने मां-बाप के लिए
क्या कर सकते हैं
अगर बेटी को परखना ही है
तो यह परखो कि वह तुमसे कितना प्यार करते हैं अगर मदद ही करना है तो
बेटी की तो यह करो कि उसे दौड़ने दो
और कहो बेटी मैं तेरे साथ हूं
अगर बेटी है तभी तो घर घर बनता है
वरना तो मकान ही रह जाता है
अगर बेटी पराए घर की अमानत है तो
वह पापा का शान भी है
अगर बेटी है तभी आज वो
किसी के घर की बहू है, भाभी है, मां भी तो है
आज दूख तो सिर्फ इस बात का है कि
जो बेटी अपने मां पापा के लिए इतना कुछ करती है उसे यह समाज अपने मां पापा को
मुखाग्नि देने का भी हक नहीं देता

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