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भटकती मंज़िल

भटकती मंजिल

भटकते भटकते आज किन गलियों में आ गए
ना आता है और ना ही पता है
कहां से चले थे और कहां रुक गए
रास्ते दो हजार हैं पर
उस रास्ते जाए जो कि अनजान हैं
और हम भी तो अंजान हैं उनसे
क्या करें ना करें कुछ भी तो समझ नहीं आ रहा
याद बस इतना है कि घर वापस जाना है
पर कैसे जाये यह तक नहीं पता
सूरज सर पर बैठा सब खेल देख रहा है
पर पता नहीं क्यों बोले से इतरा रहा है

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